मंगलवार, 1 मई 2012

मगध

श्रीकांत वर्मा
श्रीकान्त वर्मा (1931-1986)


मगध

सुनो भाई  घुड़सवार मगध किधर है
मगध से आया हूं
मगध
मुझे जाना है

किधर मुड़ूँ
उत्तर के दक्षिण
या
पूर्व के पश्चिम
में

लो, वह दिखायी पड़ा मगध
लो, वह अदृश्य

कल ही तो मगध मैंने
छोड़ा था
कल ही तो कहा था
मगधवासियों ने
मगध मत छोड़ो
मैंने दिया था वचन
सूर्योदय के पहले
लौट जाऊँगा।

न मगध है न मगध

तुम भी तो मगध को ढूँढ़ रहे हो
बंधुओं
यह वह मगध नहीं
तुमने जिसे पढ़ा है किताबों में
यह वह मगध है
जिसे तुम
मेरी तरह गँवा
चुके हो।
***   ***   ***

9 टिप्‍पणियां:

  1. मन को छूती ....बहुत सुंदर कविता ....!!
    पढ़वाने का आभार ....!!

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  2. यह वह मगध नहीं
    तुमने जिसे पढ़ा है किताबों में
    यह वह मगध है
    जिसे तुम
    मेरी तरह गँवा
    चुके हो।

    श्रीकांत वर्मा ने अपनी इस कविता के माध्यम से इतिहास की उस कड़ी को दुहराया है जो समय के प्रवाह के साथ अपना अस्तित्व एवं गरिमा खो चुका है । इन पक्तियों की पृष्ठभूमि में न जाने कितने सत्य एवं संघर्ष की कहानी मगध में दम तोड़ चुकी है। आज मगध का अपना कहने के लिए कुछ शेष नही बचा है पर श्रीकांत वर्मा ने अपनी इस कविता के माध्यम से मगध की महता को बखूबी से रेखांकित किया है जो साहित्य एवं इतिहास का सहचर बन चुका है । इस कविता को पोस्ट करने के लिए आपका विशेष आभार ।

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  3. राष्ट्र-कवि दिनकर वे भी कुछ ऐसे ही प्रश्न पूछे थे -

    'तू पूछ अवध से राम कहाँ ?
    वृंदा ! बोलो घनश्याम कहाँ ?
    ओ मगध ! कहाँ मेरे अशोक ?
    वह चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ ?'
    *
    - बहुत सार्थक कविता कि मगधवासी ही मगध को विस्मृत कर बैठे

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

    charchamanch.blogspot.com

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  5. श्रीकांत वर्मा जी की कविता पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार ....

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  6. बहुत ही सुन्दर कविता ..पढवाने का आभार.

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  7. श्रीकांत जी को पढ़ना एक अपूर्व अनुभव रहा .हम भी तो अपने अपने शहरों में अपने शहर को ढूंढ रहें हैं .

    कृपया यहाँ भी पधारें -
    डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
    सोमवार, 30 अप्रैल 2012

    जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा

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