रविवार, 20 जून 2010

काव्यशास्त्र-17 :: आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक)

काव्यशास्त्र-17

आचार्य  सागरनन्दी

एवं

आचार्य (राजानक) रुय्यक

- आचार्य परशुराम राय

 

आचार्य  सागरनन्दी

आचार्य  मम्मट के परवर्ती आचार्यों में आचार्य सागरनन्दी का नाम सर्वप्रथम आता है। इनका नाम केवल सागर था नन्दी वंश में उत्पन्न होने के कारण सागरनन्दी के नाम से ये जाने जाते हैं। इनके जीवन-वृत्त के विषय में कोई अधिक विवरण उपलब्ध नहीं है।

आचार्य  सागरनन्दी कृत ‘नाटकलक्षणरत्नकोश’ नामक केवल एक ग्रंथ है। यह नाट्यशास्त्र पर लिखा गया ग्रंथ है। अपने ग्रंथ के प्रणयन में जिन आचार्यों को इन्होंने अपना प्रेरणास्त्रोत माना है, ग्रंथ के अन्त में उनका उल्लेख इस प्रकार किया है-

श्रीहर्षविक्रमनराधिपमातृगुप्त-

गर्गाश्मकुट्टनखकुट्टकबादरीणाम्।

एषां  मतेन भरतस्य मतं  विगाह्य

घुष्टं  मया समनुगच्छत  रत्नकोशम्।।

यहाँ  आचार्य सागरनंदी ने नाट्यशास्त्र के पूर्ववर्ती आचार्यों के मतों का अपने ग्रथं ‘नाटकलक्षणरत्नकोश’ का आधार बताया है। उक्त श्लोक में इनके पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं- हर्षविक्रम, मातृगुप्त, गर्ग, अश्मकुट्ट, नखकुट्ट, बादरिका और आचार्य भरत। कई स्थानों पर इन्होंने आचार्य भरत के श्लोकों को यथावत ले लिया है। इससे लगता है कि ये आचार्य भरत से अधिक प्रभावित हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि नाट्यशास्त्र के उक्त आचार्यों के अतिरिक्त आचार्य धनञ्जय और उनके भाई आचार्य धनिक भी हैं।

आचार्य  सागरनन्दी का ग्रंथ ‘नाटकलक्षणकोश’ उपलब्ध नहीं था। केवल इसका परिचय अन्य ग्रंथों में उल्लेख के रुप में ही मिलता था। लेकिन 1922 में इसकी एक पाण्डुलिपि स्व0 सिलवाँ लेवी को नेपाल में मिली जिन्होंने इस पर एक लेख ‘जरनल एशियाटिक’ में प्रकाशित करवाया। इसके बाद इसका सम्पादन कर श्री एम. डिलन ने लन्दन से इसे 1937 प्रकाशित करवाया।

forestback2 आचार्य (राजानक) रुय्यक

(रुचक)

आचार्य  रुय्यक का काल बारहवीं  शताब्दी है। ‘राजानक’ इन्हें कश्मीर नरेश द्वारा प्रदत्त उपाधि है। कश्मीर में राजाओं द्वारा विद्वानों को ‘राजानक’ की उपाधि देने की परम्परा सी थी। इनके जीवनवृत्त के विषय कोई विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है।

कहा जाता है कि आचार्य रुय्यक ने कुल नौ ग्रंथों का प्रणयन किया था जिनके नाम हैं- सहृदयलीला, व्यक्तिविवेक पर टीका, अलंकारसर्वस्व, काव्यप्रकाशसङे्त, अलंकारमञ्जरी, अलंकारानुसारिणी, साहित्यमीमांसा, नाटकमीमांसा, और अलंकारवार्त्तिक। सहृदयलीला स्त्रियों के प्रसाधन, अलंकार आदि से सम्बंधित काव्य है। ‘अलंकार सर्वस्व’ काव्यशास्त्र पर लिखा गया ग्रंथ है। वैसे राजानक रुय्यक के केवल प्रथम तीन ग्रंथ ही मिलते हैं। शेष अन्तिम छः ग्रंथों का उल्लेख मात्र मिलता है, विशेषकर ‘अलंकारसर्वस्व’ पर आचार्य जयरथ कृत ‘विमर्शिनी’ नामक टीका में। इसके अतिरिक्त आचार्य समुद्रबन्ध ने भी ‘अलंकारसर्वस्व’ पर टीका लिखी है।

‘अलंकारसर्वस्व’ और इस पर आचार्य समुद्रबन्धकृत टीका में काव्यशास्त्र के रस, ध्वनि, व्रकोक्ति आदि सम्प्रदायों का बड़ा ही वैज्ञानिक निरुपण मिलता है।

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